गठबंधन पर हावी होता राजनीतिक स्वार्थ

। मुशर्रफ अली पिछले कुछ समय से हर बार लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन को लेकर खूब माथापच्ची होती । बातचीत, समझौते और रूठने मनाने की लंबी प्रक्रिया चलती हैलेकिन चुनाव से पहले, समय रहते कुछ तय नहीं हो पाता । किसी तरह एक लंगड़ा लूला गठबंधन आंशिक रूप से खड़ा हो जाता हैजो कोई प्रभावशाली भूमिका नहीं निभा पाता । इस बार भी 6-8 महीने से गठबंधन के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों को जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी तक, जबकि चुनाव शुरू होने में 3 हफ्ते का ही समय रह गया है । गठबंधन खड़ा नहीं हो पाया हां अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों के बीच सीट शेयरिंग के कुछ समझौते हुए हैं । एक स्थायी और मजबूत यह है कि अब हमारे यहां राजनीति की कोई जगह नहीं रह गयी है । राजनीति का पूरा मामला स्वार्थ और विश्वासघात पर चल रहा है। देशहित और परहित की अब कहींकल्पना भी नहीं रही । हर जगह स्वहित ही हावी है । सेवा भाव, बलिदान, शिष्टाचार, जैसे नैतिक मूल्य गुजरे जमाने की बातें हो चुकी हैं । हर राजनीतिक दल को और हर दल के हरेक नेता को अपने स्वार्थ के आगे कुछ नहीं दिखायी देता है ।



महागठबंधन के निर्माण के लिए पार्टियों और नेताओं में त्याग और बलिदान का होना जरूरी है । देश को आर०एस०एस० और भाजपा के फासीवाद से बचाने की बात तो की जाती है, लेकिन देशहित में थोड़ा-सा त्याग करने के लिए कोई भी पार्टी तैयार नहीं है । महागठबंधन के बनाने की इच्छा तो बहुत-सी पार्टियां रखती हैं, लेकिन हर पार्टी चाहती है कि वह गठबंधन उनके नेतृत्व में बने ।दुर्भाग्य की बात यह भी हैकि एक लंबे समय से देश में कोई ऐसा करिश्मा व्यक्तित्व वाला नेता भी मौजूद नहीं है, जिसके पीछे लोग जमा हो सकें । इसका कारण भी राजनीति का भ्रष्ट होना है । कोई भी नेता तब तक एक कद्दावर और करिश्माती व्यक्तित्व वाला नेता नहीं बन सकता जब तक वह निजी स्वार्थों से पूरी तरह ऊपर न उठ जाए । लोक कल्याण और समाज सेवा की वास्तविक भावना के साथ ही जनता के दिलों में जगह बनायी जा सकती है । सत्ताधारी पार्टी गठबंधन का मजाक उड़ाती रही है । कहीं न कहीं वह गठबंधन से डरी हुई है(शेष पृष्ठ 9 पर)