राजनीतिक नहीं राष्ट्रीय बने शिक्षा

• संपादन प्रभाग शिक्षा किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । यदि बच्चों को सही शिक्षा मिलेगी तभी देश योग्य और कुशल मानव संसाधन का विकास कर सकेगा । शोध और नयी खोज का माहौल बनाने में शिक्षा देश की मदद करती है। शिक्षा किसी भी देश के नागरिकों के व्यक्तित्व, आचरण और मूल्यों को निखारती हैं और उन्हें एक विश्व नागरिक बनने में मदद करती


नयी नीति विकास शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था प्रथम की इकाई 'असर' (एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट) सेंटर का आकलन हताशाजनक है । देश में स्कूली शिक्षा का स्तर बताने वाली इसकी हाल की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा के 44.2 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी कक्षा की किताब पढ़ने के योग्य पाये गये ।रिपोर्ट में कई और आंखें खोल देने वाले तथ्य हैं ।


 स्कूली बच्चे मोटे तौर पर आबादी का दस प्रतिशत हिस्सा हैं, इसलिए उनके शैक्षणिक कौशल का सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था की स्पर्धात्मक क्षमता पर पड़ता है प्राथमिक स्कूल में सीखने में जो कमी रह जाती है, वह किशोरों और बाद में युवाओं में चली आती शिक्षा की यह दुर्दशा हमारे लिए बेहद चिंता का विषय है । यह सरकारों के लिए राजनीतिक चुनौती भी है, क्योंकि शैक्षणिक कौशल के अभाव में बेरोजगार युवाओं की संख्या में वृद्धि होती है। 'असर' के नतीजे हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए चेतावनी हैं । सरकारी स्कूलों की लगातार गिर रही साख एक गंभीर चिंता का विषय है । भूमंडलीकरण के दौर में शिक्षा के नवीन एवं लीक से हटकर प्रयोग हो रहे हैं, ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में भारत में सरकारी स्कूलों का भविष्य क्या होगा? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है । यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो रहा हैकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक नया भारत बनाने एवं राष्ट्र की मूलभूत विसंगतियों को दूर करने का दावा कर रहे हैं ।


क्या कारण है कि शिक्षा जैसे बुनियादी प्रश्नों पर अभी भी ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं । प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को लेकर जो कुछ कदम उठाये भी गये हैं, उनके सकारात्मक परिणाम सामने क्यों नहीं आ रहे हैं । राष्ट्रीय किया को अर्थात किस नीति नीति आबादी सबसे अब पढ़ाई व पाठ्यक्रम संबंधी जरूरतें तेजी से बदल रही हैं। ऐसे में हमें नये सिरे से तय करना होगा कि 'क्या और कैसे पढ़ाया जाए। अब प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक हर स्तर पर शिक्षा स्तर को सुधारने की चुनौती हैअर्थात हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना साकार करना होगा। दुनियाभर के लगभग सभी देश एक निश्चित अंतराल पर शिक्षा सुधार का कठिन प्रयास करते और अपनी शिक्षा नीति की समीक्षा करते हैं भारत ने भी इस संबंध में कई बड़े कदम उठाए हैं। सबसे पहले मुदलियार आयोग का गठन हुआ, फिर कोठारी आयोग बना 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी थी, जिसे 1992 में संशोधित किया गया ।