पिछले दिनों अबू धाबी में मुस्लिम देशों के समूह ओ.आई.सी. में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बुलाए जाने पर पाकिस्तान तिलमिला उठा । उसकी तिलमिलहाट उसी मानसिकता का नतीजा है, जो 1947 में देश के विभाजन की वजह बनी थी । और इसी मानसिकता से पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया । ओ.आई.सी. के विदेश मंत्रियों के सम्मलेन में जो अलग घोषणापत्र पास हुआ, उस पर विपक्ष खास तौर पर कांग्रेस ने भाजपा को बुरी तरह घेरा । विपक्षी दलों की राय थी कि भाजपा ने इस सम्मलेन में देश को मिले मौके को काफी बढ़ा-चढ़ाकर कर पेश किया और इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया जो सही नहीं थी । मगर याद रहे कि सम्मलेन में बुलाया जाना भारत की एक बड़ी उपलब्धि थी । इस मौके पर भारत ने बेहतर तरीके से अपनी बात रखी । 50 साल पहले बने इस संगठन में भारत को इस तरह का मौका पहली बार मिला । यह मामूली बात नहीं थी सुषमा स्वराज ने इस सम्मलेन में साबित करने की कोशिश कि भारत की 18.5 करोड़ की मुस्लिम आबादी, किसी भी मुस्लिम देश की आबादी से कम नहीं है । और भारत दुनिया का तीसरा देश है, जहां मुसलमानों की इतनी आबादी रहती है । यहां के लोग पूरी दुनिया में, खास तौर पर खाड़ी, पश्चिम एशिया, पश्चिमी अफ्रीका, मध्य अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी योग्यता और मेहनत से काम कर रहे हैं। इसके अलावा, भारतीय मुस्लिम देश की मुख्यधारा में शामिल होकर यहां की विविध संस्कृतियों, भाषाओं के विकास में योगदान दे रहे हैं, जबकि पाकिस्तान, जिसकी
बुनियाद टेढी ईट पर रखी हुई है, अफगानिस्तान के युद्ध में कूदकर अपना हाथ जला चुका है । साथ ही, भारत में भी चिंगारियों को हवा देकर अपना दामन जला चुका है। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है । विभिन्न जातियों और क्षेत्रों के लोग एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं ।भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1948 में दिल्ली की जामा मस्जिद से अपने मशहूर भाषण में भारत के मुसलमानों को इस ख़तरे से सावधान किया था कि जिस देश को इस्लाम और धर्म के नाम पर बनाया गया है, वह आगे चलकर, बलूच, पंजाबी, सिंधी और दूसरे समूहों में बंटकर टूट जाएगा । पाकिस्तान का बनना बड़ी गलती साबित होगी । मौलाना आजाद की भविष्यवाणी 1971 में सच साबित हुई और अपने अस्तित्व की 25वीं सालगिरह मनाने से पहले ही पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया । हाल की घटनाएं और भारत-पाक के बीच टकराव से साबित हो गया कि पाक के हुक्मरानों ने 1971 के सदमे से कोई सबक नहीं लिया । जो देश अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहा है, वह भारत के मुसलमानों के हितों का ठेकेदार बनने की कोशिश कर रहा है ।
पाकिस्तान 1969 में ओ.आई. सी. के बनने के बाद से ही इस समूह में भारत के मुसलमानों को प्रतिनिधित्व देने से रोकने को हर हथकंडा अपनाता आया हैचाहता है कि सिर्फ वह ही भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के हितों का ढिंढोरा पीटता रहे । इस सम्मलेन में भी उसने यह हथकंडा अपनाया और भारत की विदेश मंत्री को रोकने की पूरी कोशिश की । 57 देशों के इस समूह में भारत की विदेश मंत्री को भाषण देने से रोकने की कोशिश में उसे नाकामी हाथ लगी । विशेष अतिथि की हैसियत से सुषमा स्वराज ने ओ.आई.सी. के देशों को अच्छे से समझा दिया कि दुनिया के मुसलमानों के इतने बड़े मंच पर भारत में मुस्लिमों की 18. 5 करोड़ की बड़ी आबादी को नजरअंदाज करना मुनासिब नहीं है । असल में, पाकिस्तान आज के दौर को समझ नहीं पा रहा है, जहां अर्थ धर्म पर भारी है विदेश नीति और अर्थ नीति साथ-साथ चल रही हैं । भारत 135 करोड़ की आबादी वाला बहुत बड़ा बाजार है।
सऊदी अरब, ईरान और यू.ए. ई. जैसे बड़े देश हमारे बाजार की अहमियत को अच्छी तरह समझ रहे हैं । मुस्लिम देशों से भारत के पुराने संबंध हैं, जिसको नजरअंदाज करना असंभव है । मौजूदा सरकार से पहले ओ. आई.सी. को भारत ने नजरअंदाज किया । शायद हम पाकिस्तान के जरिये भारत को रोकने के लिए अपनाए गए हथकंडों के आगे बेबस हो गए । हमें ओ. आई. सी. को अहमियत देनी चाहिए और पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए आगे आना चाहिए। अबू धाबी में सुषमा स्वराज ने अपनी जिम्मदारी को खूब अच्छे से निभाया। किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि ओ.आई.सी. अपना 50 साल पुराना दृष्टिकोण भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के एक ही भाषण से बदल देगा । मगर शुरुआत अच्छी हुई हैं । रूस, थाईलैंड और बोस्निया जैसे देश इस समूह में पर्यवेक्षक का दर्जा हासिल कर सकते हैं, तो 18.5 करोड़ मुस्लिम आबादी वाला यह देश इस दर्जे से र्वोचत क्यों रहे?
शहनवाज़ सिद्दिकी